प्रशासन की ताकद !! बिगर मंत्री मंडल की सहायता के भी प्रदेश का शासन सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है । प्रशासन को भी उन्होंने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि मंत्रियों के बीच विभागों के बंटवारे के न हो पाने के बावजूद मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश को ‘‘नौकरशाही‘‘ के माध्यम से आवश्यक कार्य निष्पादित (एग्जीक्यूट) कर संदेश देने में सक्षम हैं।

शाबाश ! मध्य प्रदेश! मेरा प्रदेश! अपना प्रदेश !भारत देश!
                              साभार-राजीव खंडेलवाल  
                              (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार            एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
                                                                                                                                                           
       वास्तव में देश के ‘‘मध्य‘‘ में होने के कारण मध्य प्रदेश देश का केंद्र बिंदु बना हुआ है। ‘‘ब्रिटिश इंडिया’’ का केंद्र बिंदु मध्य प्रदेश के मेरे अपने जिले बैतूल के ‘‘बरसाली‘‘ ग्राम में स्थित है। मुझे ऐसा लगता है कि जिस प्रकार  भौगोलिक दृष्टि से केंद्र बिंदु (सेंट्रल प्वाइंट)  मध्य प्रदेश मैं होने के कारण प्रदेश ‘‘देश’’ को लीड कर रहा है। ठीक उसी प्रकार राजनीतिक क्षेत्र में मध्य प्रदेश में ऐसा कुछ होता रहता है, जिससे मध्य प्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदु बना रहे।और वह कृतिपये राजनैतिक क्षेत्र में पूरे देश को लीड (नेतृत्व) कर अपने ‘‘केंद्र‘‘ में होने की सार्थकता, उपयोगिता को सिद्ध कर सके।
बात ‘‘राजनीति‘‘ की कर ले! जिसे लेकर हमारा प्रदेश अग्रणी होकर लीड कर, देश को एक नई दिशा दिखाने का प्रयास कर रहा है। जरा सा पीछे जाइए! ज्यादा समय नहीं हुआ है, जब कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ था। तब पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने पुत्र जो दूसरी बार विधायक बने है, को ‘‘कैबिनेट‘‘ मंत्री बनाने के चक्कर में पूरा का पूरा मंत्रिमंडल ही कैबिनेट से भर (पूर्ण) कर दिया था। देश के राजनीतिक इतिहास में शायद ही इसके  पहले कभी ऐसा हुआ हो। इस प्रकार मध्यप्रदेश ने इस दिशा में अग्रणी होकर सत्ता की राजनीति को नई दिशा देकर लीड किया। साथ ही समस्त प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को जिनमें से कईयों की ‘‘पुत्र मोह’’ की स्थिति है, अपने पुत्रो की ‘‘सवारने’’ के लिये उन्हें एक नई दिशा दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ के माध्यम से ‘‘मध्यप्रदेश‘‘ ने दी।
आइए मध्यप्रदेश  द्वारा देश को ‘‘लीड‘‘ करने के दूसरे कदम की ओर चलते हैं। कुछ समय पूर्व 14 वर्ष से मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह ने जब मुख्यमंत्री पद की चौथी बार शपथ ली थी, तब  एक महीने से ज्यादा समय तक बिना  सहयोगी मंत्रियों के मंत्रिमंडल के ‘‘अकेले’’ ‘‘कोरोना संक्रमण संकट काल में ‘‘सफलतापूर्वक’’ शासन चलाया। इसके लिए शिवराज सिंह बधाई के पात्र हैं, जिनके माध्यम से मध्यप्रदेश ने पूर्ण राजनीतिक कौशल दिखाकर देश का राजनीतिक नेतृत्व किया। शिवराज के इस जादू ने गायक मुकेश की ‘‘चल अकेला चल अकेला’’ गाने की याद दिला दी ।इसके आगे और चलिए। एक महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद जब पांच मंत्री बनाए गए तो उन्हें भी विभाग का आवंटन करने के पहले प्रदेश की ‘‘भौगोलिक स्थिति‘‘ को महत्व देते हुए संभागीय प्रभार दिए गए। देश की भौगोलिक स्थिति के ‘‘केंद्र‘‘ में होने के कारण ही तो शायद मध्यप्रदेश का महत्व है?
और थोडा आगे चलिए ! शिवराज सिंह तो नई नई चीजें ईजाद कर जनता के बीच प्रस्तुत करने में माहिर है। इसीलिए लोकप्रिय मुख्यमंत्री होकर ‘‘जगत मामा‘‘ के रूप में जाने जाते हैं। लगभग दो महीने से ज्यादा की लंबी प्रतीक्षा के बाद उन्होंने अपना पूरा  मंत्रिमंडल का गठन करने में ‘‘सफलता‘‘ पाई। मध्य प्रदेश हमेशा नई-नई चीजें इजाद कर देश का नेतृत्व करें, शायद मुख्यमंत्री ने अपनी इस भावना के कारण, चौदह गैर विधायकों को मंत्री बनाने का ऐतिहासिक कार्य कर देश को एक नया संदेश दिया है। इस मंत्रिमंडल विस्तार में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ‘‘दिग्विजय सिंह फार्मूले‘‘ का भी भरपूर फायदा उठाया है। सिंधिया समर्थक दो मंत्री ऐसे व्यक्ति बनाए गए हैं, जो मात्र डेढ़ वर्ष ही विधायक रह पाए है।
आइए इस सफर को कुछ और आगे तेजी से बढाकर सफर पूरा करें। आठ दिन व्यतीत हो जाने के बावजूद अपने मंत्रियों को विभागों का बंटवारा नहीं किया ? (नहीं हो पाया है)। इस प्रकार उन्होंने देश को यह दिशा दी कि, बिगर मंत्री मंडल की सहायता  के भी प्रदेश का शासन सफलतापूर्वक चलाया जा सकता है । प्रशासन को भी उन्होंने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि मंत्रियों के बीच विभागों के बंटवारे के न हो पाने के बावजूद मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश को ‘‘नौकरशाही‘‘ के माध्यम से आवश्यक कार्य निष्पादित (एग्जीक्यूट) कर संदेश देने में सक्षम हैं। ‘‘नौकरशाही’’ भी शायद यही चाह रही है कि उसके 33 मालिक न होकर एक ही मालिक हो, तो ज्यादा अच्छे से काम कर पाएंगे, और शायद कर रहे हैं। यह अनुभव मैंने कुछ अनुभवी सम्मानीय ‘‘नौकरशाहों’’ से चर्चा के दरमियान महसूस किया है। वैसे यह एक अलग विषय है कि जनप्रतिनिधि गण अपने को जनता का सेवक ‘‘नौकर‘‘ ‘‘सर्वेंट ऑफ द मास्टर‘‘ मानते हैं, तब ब्यूरोक्रेसी इन सेवकों के मालिक हुई  या ?इस प्रकार माननीय शिवराज जी ने एक नई  ईजाद  का सफलतापूर्वक प्रयोग कर इस मंत्रिमंडलीय ढांचे में होने वाले अनावश्यक खर्चे को बचाने की दिशा में देश की आर्थिक बचत कर देश को एक नया संदेश देना चाहते हैं? क्योंकि सही परिपक्व नेतृत्व (शिवराज सिंह ) को सहयोगी मंत्रीयों की कोई आवष्यकता नहीं हैं। इस प्रकार अपना मध्य प्रदेश इस कारण से भी देश का नेतृत्व करेगा? इस बात के लिए भी उनको कोटीशः बधाई?
कुछ मंत्रियों द्वारा विभाग बंटवारे में देरी पर यह कहा  कि मुख्यमंत्री पूर्ण विचार-विमर्श चर्चा के उपरांत ‘‘यथा योग्य‘‘ विभागों का बंटवारा करेंगे? यदि विभागों के बंटवारे में ही दस दिनो का महत्वपूर्ण समय जाया जा रहा है, तब मुख्यमंत्री त्वरित निर्णय कैसे ले पाएंगे? या उनके निर्णय क्षमता पर यह एक प्रश्नवाचक चिन्ह तो नहीं है? यह एक और प्रश्न व शंका को जन्म देता है कि पूर्व में इन्हीं शिवराज सिंह जी ने तीन बार मुख्यमंत्री बनने पर अपने मंत्रिमंडल साथियों का बंटवारा जल्दी कर दिया था ।  क्या तत्समय वे बिना  विचारे, जल्दबाजी मे लिए गए निर्णय थे ? या मुख्यमंत्री जी के निर्णय लेने की क्षमता इन पंद्रह सालों में कुछ कमजोर हो गई है ? इन सब प्रश्नों का कोई जवाब नहीं होते हैं ? यही ‘‘राजनीति का चरित्र है‘‘ जिसे प्रत्येक नागरिक को ‘‘भोगना‘‘ है।
वैसे आज शाम तक विभागो की बटवारा होने की घोषणा शिवराज सिंह नेजरूर की है।

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